पुर-कैफ़ कहीं के भी नज़ारे न रहेंगे दुनिया में अगर इश्क़ के मारे न रहेंगे दुनिया-ए-मोहब्बत में चराग़ाँ न मिलेगा पलकों पे अगर अश्क हमारे न रहेंगे तुम छोड़ के मत जाओ मुझे शहर-ए-बला में वर्ना मिरे जीने के सहारे न रहेंगे तय कर लो सफ़र शब का कि मौक़ा है ग़नीमत फिर चर्ख़-ए-बरीं पे ये सितारे न रहेंगे ग़म ज़ीस्त के अफ़्साने का उनवान हसीं है हम होंगे कहाँ ग़म जो हमारे न रहेंगे बे-म'अनी नज़र आएँगे आँखों के सहीफ़े मौजूद अगर उन में इशारे न रहेंगे फिर किस पे यक़ीं कैसा भरम कैसी मुरव्वत आज़ा भी हमारे जो हमारे न रहेंगे