पैग़ाम-ए-ज़िंदगी है ख़ुशी की नवेद है मेरे लिए तो आप का दीदार ईद है किस ने कहा है ज़ीस्त मिरे नाम कीजिए दो पल भी साथ आप का ईद-ए-सईद है इक आरज़ू है आप मिरे हम-सफ़र बनें ता-उम्र देखती रहूँ ये शौक़-ए-दीद है दिल डूब जाएगा मिरा बारिश में प्यार की सैलाब-ए-इश्क़ आने की शायद शुनीद है हर वक़्त मेरे लब पे रही है यही दुआ मिल जाए वो कि जिस का मिरा दिल मुरीद है बैठे हैं बुत बने हुए ऐसे वो सामने होने को अब निगाह से गुफ़्त-ओ-शुनीद है बे-शक 'सबीला' मैं ने रक़म की है है दास्ताँ लेकिन नया ख़याल है लहजा जदीद है