ख़ूँ-बहा का ख़त्त-ए-ला-दा'वी दिया जी लिया था उसे नाहक़ जी दिया सोज़न-ए-मिज़्गाँ ने तार-ए-अश्क से बिन तिरे आँखों को मेरे सी दिया इश्क़ बिन दिल दिल न था तो जान यूँ तेल बिन बत्ती बना हत्ती दिया उस मसीहा ने मिरे मरक़द पे आ क्या जलाया जब दिए को जी दिया दाद पर जब चढ़ चुका दिल ओ नसीम अब की बाज़ीगर बची अब की दिया