पानी पानी रहते हैं ख़ामोशी से बहते हैं मेरी आँख के तारे भी जलते बुझते रहते हैं बेचारे मासूम दिए दुख साँसों का सहते हैं जिस की कुछ ताबीर न हो ख़्वाब उसी को कहते हैं अपनों की हमदर्दी से दुश्मन भी ख़ुश रहते हैं मस्जिद भी कुछ दूर नहीं वो भी पास ही रहते हैं