पर्दा हटा के जब वो हसीं मुस्कुराएगा बिजली हमारे होश-ओ-ख़िरद पर गिराएगा क्या थी ख़बर कि तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ के बाद भी हम को वो शोख़ पर्दा-नशीं याद आएगा उम्मीद-ओ-आरज़ू की तबाही तो देख ली अब और क्या हमें ये मुक़द्दर दिखाएगा ऐ क़ल्ब-ए-ज़ार सब्र-ओ-तहम्मुल से काम ले कब तक किसी की याद में आँसू बहाएगा मेरी ज़बाँ से सुन न सके वो अगर तो क्या रूदाद मेरी उन को ज़माना सुनाएगा जिस राज़ को छुपा न सके क़ैस-ओ-कोहकन ऐ क़ल्ब-ए-ग़म-नसीब तू कैसे छुपाएगा 'नय्यर' ग़मों की तेज़ हवाओं के सामने कब तक ख़याल-ओ-ख़्वाब की शम्अ जलाएगा