परेशाँ भी करेगी गुल खिला के तमाशे देखते रहना हवा के यहीं जन्नत यहीं गोया जहन्नम तू ही अब सोच ऐ बंदे ख़ुदा के बुलाते वो अगर तो क्या न जाते गिरफ़्ता यूँ भी कब थे हम अना के गुलों पर काँपते शबनम के क़तरे लरज़ते हर्फ़ होंटों पर दुआ के हवस की आग ने झुलसा दिया है हमें चलना था कुछ दामन बचा के है किस के लम्स की ख़ुश्बू गुलों में धनक में रंग हैं किस की अदा के ठहरते हैं ज़रा पलकों पे आँसू सितारे टूटते हैं झिलमिला के कोई पर्दे के पीछे बोलता था मगर हम ख़ुश हुए थे लब हिला के हमारी जान पर बन आई लेकिन कहाँ है मुतमइन वो आज़मा के कभी खुल कर मियाँ-'फ़ारूक़' हँस दो ये क्या रह जाते हो तुम मुस्कुरा के