पसंद-ए-ख़ातिर-ए-जानाँ है इंकिसार मिरा इसी लिए तो मह-ओ-मेहर हैं ग़ुबार मिरा मिली है मुझ को अज़ल से कमंद-ए-यज़्दाँ-गीर शिकार-ए-हर-कस-ओ-ना-कस नहीं शिकार मिरा अलस्सबाह मुझे भर के जाम-ए-नज्म-ए-सहर मुदाम देता है साक़ी-ए-नाम-दार मिरा मिसाल-ए-लाला मोहब्बत के दाग़ होते हुए नहीं है दामन-ए-दिल देख दाग़-दार मिरा मज़ा है वस्ल में और लुत्फ़ हिज्र-ए-यार में है वो फल का वक़्त ये है मौसम-ए-बहार मिरा नवा-ए-नूर हो जब मेरे लब पे अहल-ए-चमन तो एहतिराम करे क्यों न शाख़-सार मिरा परख सके जो मुझे वो निगाह-ए-पाक कहाँ जुदा 'अमीं' है ज़र-ओ-सीम से इयार मरा