पासबानों पासबानी देख ली हर नज़र की मेहरबानी देख ली आए बोले हँस दिए फिर चल पड़े चार रोज़ा ज़िंदगानी देख ली अब चमन का रंग रंगीं हो चुका बाग़बाँ की बाग़बानी देख ली गुल का दामन चाक देखा रात को सुब्ह को फिर नौहा-ख़्वानी देख ली माली-ए-गुलशन का वो ज़ुल्म-ओ-सितम बुलबुलों की बे-ज़बानी देख ली जिन लबों से जा मिले थे लब मिरे उन लबों की गुल-फ़िशानी देख ली बे-ख़ुदी में चाँदनी समझा किए होश में सब ज़ुल्म-रानी देख ली इस क़दर मग़रूर बुत का क्या सबब या'नी उम्र-ए-जावेदानी देख ली जो मेरे थे रुख़ को फेरे चल दिए मुझ में कोई ना-तवानी देख ली हम-सफ़ीरों से परेशाँ हो गया रुक गए जब रात रानी देख ली इस शबाबी दौर पे कब तक है नाज़ सारे आलम की जवानी देख ली सुनते थे 'रहबर' तिरी बिपता कहाँ यूँ तिरी जादू-बयानी देख ली