फेर कर आँख मिरे यार कहाँ जाओगे दिल तुम्हारा है तलबगार कहाँ जाओगे हैं ख़ुशी के वहाँ कोहसार कहाँ जाओगे छोड़ कर ग़म का ये गुलज़ार कहाँ जाओगे सुन के अल्फ़ाज़ ये दो-चार कहाँ जाओगे और भी हैं कई अशआ'र कहाँ जाओगे कोर-बीनों का बसेरा है वहाँ पर अब भी ले के आईना मिरे यार कहाँ जाओगे इस ख़राबे में भी उल्फ़त के निशाँ मिलते हैं धुंद ही धुंद है उस पार कहाँ जाओगे ग़ाज़ा-ए-इश्क़ है तक़दीर-ए-हवस पर ऐ 'क़मर' तोड़ कर ज़ब्त की दीवार कहाँ जाओगे