फिर आँखों से ओझल हो कर तू ने कैसा रूप भरा चारों तरफ़ बे-रंग हवाएँ तारों तक बे-अंत ख़ला लम्हों की मेहमान थी गोया रिश्तों की मेराज यहाँ वक़्त से पहले सब कुछ देखा वक़्त पड़ा तो कुछ भी न था दिल के सदफ़ से उभरा मोती नज़रों का अरमान लिए दुनिया ने आँसू कह डाला झट पलकों से टूट गिरा आवाज़ों के इस जंगल में ख़ामोशी का पेड़ कहाँ सरगोशी का रूप धार ले छाँव में जिस की दिल की सदा थाम हवा का दामन 'राही' आओ हम भी लांघ चलें लफ़्ज़ों के पुल बाँध रहे हैं कोह-ए-निदा से कोह-ए-निदा