सदा-ए-दिल भी मिरी ख़ामुशी में डूब गई बिसात-ए-शौक़ ये किस बेबसी में डूब गई ख़ुश-आमदीद की ख़ातिर खुले थे लब गोया बड़े तपाक से शबनम कली में डूब गई लताफ़तों ने जो देखा कसाफ़तों का ख़ुलूस तो रूह-ए-हुस्न तन-ए-आशिक़ी में डूब गई वो ज़िंदगी जो पनपती थी दिल की वुसअ'त में हर एक शय की मुसलसल कमी में डूब गई सहर के रूप में 'राही' वो फिर बहाल हुई ग़मों की रात जो ज़िंदा-दिली में डूब गई