फिर वही तसव्वुर है फिर वही नज़ारे हैं फिर वही तबस्सुम है फिर वही सहारे हैं कोई कब मिला हम से ये हमें नहीं मालूम यूँ भी होश में रह कर हम ने दिन गुज़ारे हैं उन से दूर रह कर भी ये यक़ीं नहीं होता उन से दूर रह कर भी हम ने दिन गुज़ारे हैं आइना खुरच कर तुम ग़ौर से ज़रा देखो कितने लोग भूके हैं कितने बे-सहारे हैं आप भी 'ज़िया' भाई कब की बात करते हैं आज क्या वो हम तुम हैं जो वफ़ा के मारे हैं