रूदाद-ए-अलम किस से कहूँ तेरे सिवा मैं दर पर तो किसी ग़ैर के जाने से रहा मैं उस वक़्त मिरे सामने क्या क्या नहीं आया जब तज़किया-ए-नफ़स की राहों पे चला मैं क्यों जाए नज़र अपने सिवा और किसी पर मुझ से तो बुरा कोई नहीं सब से बुरा मैं किस मुँह से कहूँ मैं कि सज़ा-वार-ए-करम हूँ जब अपने किए पर कभी नादिम न हुआ मैं इस दौर-ए-तरक़्क़ी का भला हो कि 'ज़िया' आज अख़्लाक़ से औसाफ़-ए-हमीदा से गया मैं