फिरा पयाम्बर अपना ख़राब रस्ते में दिया नसीब ने अच्छा जवाब रस्ते में ये सच है राह-ए-मोहब्बत बड़ी है टेढ़ी खीर न आए ख़िज़्र कभी इस ख़राब रस्ते में भटकते फिरते हैं इस रहगुज़ार में आशिक़ मुसाफ़िरों की है मिट्टी ख़राब रस्ते में गली से यार की हम उठ के चल चुके थे मगर मचल गया दिल-ए-पुर-इज़्तिराब रस्ते में वो रस्ता काट के चलते हैं इस लिए मुझ से कि कुछ कहे न ये ख़ाना-ख़राब रस्ते में बग़ल में दाब के ले चल अदम को शीशा-ए-मय मिलेगी 'दाग़' न तुझ को शराब रस्ते में