तमाम ऐश-ओ-तरब और सुकून एक तरफ़ अता-ए-इश्क़ हमारा जुनून एक तरफ़ मकाँ में खिड़कियाँ दीवार-ओ-दर ज़रूरी हैं मगर जो रोके है छत वो सुतून एक तरफ़ इसी महीने में तुम छोड़ कर गए थे मुझे निकाल दूँगी कैलन्डर से जून एक तरफ़ मैं ज़िंदगी के सबक़ एक ओर रखती हूँ तमाम हिकमत-ओ-इल्म-ओ-फ़ुनून एक तरफ़ है एक और इशारा तिरी निगाहों का ज़माना भर के सभी अफ़लातून एक तरफ़ बना के भेजूँगी इस बार इश्क़ का स्वेटर निकाल के अभी रख ली है ऊन एक तरफ़ रगों में वैसे तो हर वक़्त दौड़ता है 'शिखा' मगर जो आँख से टपका वो ख़ून एक तरफ़