फूल को आग दुआओं को सज़ा भी कह दूँ आप की ज़िद है तो अच्छों को बुरा भी कह दूँ कम से कम इतना सलीक़ा तो मिला सज्दों से कोई मेआ'र पे उतरे तो ख़ुदा भी कह दूँ इन ज़बानों की तो आवाज़ ही घुट जाती है दिल अगर बोल रहा हो तो सदा भी कह दूँ यूँ तो इक उम्र गुज़ारी है नमक-दानों में फूल ज़ख़्मों से जो बरसें तो शिफ़ा भी कह दूँ आसमाँ साफ़ नज़र आता है घर की छत से ऐसे मंज़र को न क्यों अर्ज़-ओ-समा भी कह दूँ सभी बाज़ार में लाठी पे खड़े मिलते हैं कोई छोटा तो मिले जिस को बड़ा भी कह दूँ आज-कल शहर में ये आम कहावत है 'रियाज़' जिस को ईमान कहूँ उस को ख़ता भी कह दूँ