रफ़ूगरों में उसे कौन अब शुमार करे रगों की सुर्ख़ क़बाएँ जो तार तार करे इन्हीं से फ़स्ल-ए-नमकदाँ उगाई जाएगी नई सदी नए ज़ख़्मों का ए'तिबार करे ख़ुदा पे छोड़ दे कश्ती ये उस की मर्ज़ी है नदी में ग़र्क़ करे या नदी के पार करे ज़ईफ़ बाप को काँधे पे ले के चलता है मिरा ख़ुदा मिरे बच्चे को शहसवार करे ये पत्थरों से बना है ये देखते रहना ये देवता किसी इंसान पर न वार करे अभी मैं फ़ाक़ा-कशी के महाज़-ए-जंग पे हूँ मिरी ग़ज़ल से कहो मेरा इंतिज़ार करे मैं दोस्ती की उसी हद में फिर खड़ा हूँ 'रियाज़' अबू-ज़फ़र को जो दिल्ली से बे-दयार करे