पी लेता हूँ तो सच के सिवा कुछ नहीं कहता मस्ती में ब-जुज़ हर्फ़-ए-दुआ कुछ नहीं कहता वाइज़ की मजालिस में सफ़ा-केश न जाएँ बे-हर्फ़-ओ-हिकायात रिया कुछ नहीं कहता जो चाहे करे मुझ को सज़ा दे कि जज़ा दे रहता हूँ मैं राज़ी-ब-रज़ा कुछ नहीं कहता जब सामने आता है कोई पैकर-ए-ख़ूबी जुज़ हम्द-ए-ख़ुदा शुक्र-ए-ख़ुदा कुछ नहीं कहता जो मुर्शिद-ए-कामिल है वो ख़ुर्शीद के मानिंद बख़्शे है मुरीदों को ज़िया कुछ नहीं कहता दरबार-ए-शह-ए-हुस्न में 'दीवाना' पहुँच कर करता है फ़क़ीराना सदा कुछ कहता