पिंजरे में हमें न आना था क्या करें याँ भी आब-ओ-दाना था उस की जा कर गली में खोया वक़्र अब मैं जाना कि वाँ न जाना था एक दिन वो नज़र पड़ा साहिब जिस लिए शब को तिलमिलाना था तब कहा चश्म को मैं ऐ कम-बख़्त वस्ल में अश्क ये बहाना था उस की तस्वीर आई आँखों में पाँव उस के मुझे धुलाना था