पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे देख ऐ निगाह-ए-शौक़ तू रुस्वा न कर मुझे मक़्सद से बे-नियाज़ रहा ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मैं बे-ख़बर हुआ जो हुई कुछ ख़बर मुझे मैं शब की बज़्म-ए-ऐश का मातम-नशीं हूँ आप रो रो के क्यूँ रुलाती है शम्अ-ए-सहर मुझे हैरत ने मेरी आईना उन को बना दिया क्या देखते कि रह गए वो देख कर मुझे क़ुर्बान जाऊँ छोड़ तकल्लुफ़ की गुफ़्तुगू कह कर पुकार 'वहशत'-ए-शोरीदा-सर मुझे