पूछो न कुछ सुबूत-ए-ख़िरद मैं ने क्या दिया एक मस्त-ए-नाज़ को दिल-ए-बे-मुद्दआ दिया अब क्या गिला करूँ अदम-ए-इल्तिफ़ात का मेरी निगाह-ए-यास ने सब कुछ जता दिया बढ़ते हुए शुऊ'र में गुम हो रहा हूँ मैं एहसास-ए-हुस्न आप ने इतना बढ़ा दिया देखी न जब तजल्ली-ए-तकरार-आश्ना बे-रंगियों का रंग ख़ुदी ने जमा दिया है शाद बे-दिली पे तही-दस्त-ए-आरज़ू अच्छा किया निशान-ए-तमन्ना मिटा दिया मायूस-ए-जल्वा-हा-ए-तरब हूँ ख़बर नहीं दिल ख़ुद ही बुझ गया कि किसी ने बुझा दिया क्या लुत्फ़-ए-इज़्तिराब दिखाऊँ कि आप ने एहसास-ए-दर्द दर्द से पहले मिटा दिया अंजाम-ए-दीद-ओ-ईद अब ऐ हम-नशीं न पूछ वो मुझ को याद है मुझे जिस ने भुला दिया मा'लूम था तुझे कि वो दर्द-आश्ना नहीं 'मंज़ूर' दिल का दर्द उन्हें भी सुना दिया