पुराने अह्द के सिक्के कहाँ चला रहे हो वफ़ा ख़ुलूस मोहब्बत ये क्या सुना रहे हो भला तुम इतने अज़िय्यत-पसंद कब से हुए जो बात बात पे यूँ क़हक़हे लगा रहे हो सफ़र ही ख़ाना-ब-दोशों को ज़ेब देता है सराए काफ़ी है घर-बार क्यों बना रहे हो किरन किरन को तरसते हैं मेरे गाँव के लोग और एक तुम कि नदी में दिए बहा रहे हो तुम्हारी आँख में इक बे-कनार हसरत है तुम इस से पहले कहीं और मुब्तला रहे हो कोई तो हो जो गले से लगा के पूछे मुझे बताओ 'बद्र' मिरी जान क्या छुपा रहे हो