पुर्सिश ऐ चश्म-ए-ग़म-गुसार न कर दिल को रह-रह के अश्क-बार न कर आबला-पाई है हयात मिरी मेरी राहों से दूर ख़ार न कर ये ख़ुदा पर भी हर्फ़ रखते हैं नुक्ता-चीनों से दिल-फ़िगार न कर दम-ए-रुख़्सत बहुत रुलाएगी ज़िंदगी से तू इतना प्यार न कर ऐ सबा खिल उठेंगे ज़ख़्म-ए-दिल हम से तू ज़िक्र-ए-नौ-बहार न कर मैं भी तेरा ख़ुदा नहीं तू भी रविश-ए-कुफ़्र इख़्तियार न कर अपनी ख़ुद-कर्दगी दिखाने को हादसों पर ही इंहिसार न कर दामन-ए-गुल-रुख़ाँ में फूल भी हैं संग ही का तू इंतिज़ार न कर बार-ए-एहसाँ से मर न जाऊँ कहीं हर-नफ़स लुत्फ़-ए-बे-शुमार न कर तू जिसे देख कर तड़प उट्ठे वो सितम ऐ सितम-शिआ'र न कर तू न गिन पाएगा इन्हें ता-उम्र 'राज़' के ज़ख़्म-ए-दिल शुमार न कर