प्यास के फूल खिलें ग़म की तमाज़त जागे इस बरस फ़िक्र की इक और रिवायत जागे कोई तन्हाई का मातम भी करे तो कैसे एक दीवार भी गूँजे तो क़यामत जागे रूह सुक़रात की है जिस्म है तिरयाक मिरा ज़हर पी लूँ तो हर इक सम्त हलावत जागे मेरी ता'बीर का सूरज भी चमकना सीखे ख़्वाब के शहर में मेरे भी तो ख़िल्क़त जागे रास क्यों आए न फिर जागता माहौल 'अख़्तर' शहर सो जाए तो लोगों में अदावत जागे