क़दम-क़दम पे पराया दिमाग़ होते हैं ये पूरे लोग अधूरा दिमाग़ होते हैं किसी की फ़िक्र पे लब्बैक हम नहीं कहते हम अपने हक़ में ख़ुद अपना दिमाग़ होते हैं जवान-उम्र में डरते हैं जो बग़ावत से नए सरों में पुराना दिमाग़ होते हैं जो पहले-पह्ल अंधेरा दिखाई देते हों वो बाद बाद उजाला दिमाग़ होते हैं बहुत से लोग तो पैरों से सर के बालों तक बशक्ल-ए-जिस्म सरापा दिमाग़ होते हैं अमीर-ए-शहर की क़ुर्बत में बैठने वाले बराए-नाम ही अपना दिमाग़ होते हैं किसी की आँखों से दुनिया को देखने वाले किसी की फ़िक्र किसी का दिमाग़ होते हैं