क़ाएम वजूद-ए-इश्क़ से सारा जहान है दिल है तो काएनात की हर शय जवान है अपने लहू से रक्खी है बुनियाद-ए-ज़िंदगी हम से निज़ाम-ए-गुलशन-ए-हस्ती में जान है हर आइना हयात का धुँदला रहा है आज चेहरों पे जौर-ए-चर्ख़ का गहरा निशान है दौलत-परस्त हिर्स-ओ-हवस के ग़ुलाम हैं इफ़्लास की जबीं पे क़नाअत की शान है जागे न क्यों हयात का पुर-शौक़ क़ाफ़िला फिर वादी-ए-वफ़ा में सदा-ए-अज़ान है जिस से कि तीरगी को मिली है ज़िया-ए-नूर वो आफ़्ताब सारे ज़माने की जान है जलवों की है नुमूद पस-ए-तूर देखना शायद निगाह-ए-शौक़ का फिर इम्तिहान है 'अख़्तर' मैं फिर रहा हूँ ज़माने में ना-मुराद नीचे ज़मीं है सर पे मिरे आसमान है