शिकायत-ए-सितम-ए-रोज़गार करता हूँ ख़िज़ाँ के दौर में ज़िक्र-ए-बहार करता हूँ हज़ार रंग से तू दे रहा है मुझ को फ़रेब मगर मैं फिर भी तिरा ए'तिबार करता हूँ चमन से मुझ को बस अब इस क़दर तअ'ल्लुक़ है ख़याल-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार करता हूँ न राज़ फ़ाश हो मेरा तसव्वुर-ए-जानाँ मैं दर्द-ओ-ग़म का तुझे राज़-दार करता हूँ सहर क़रीब है तारे भी झिलमिलाते हैं अब आ भी जा कि तिरा इंतिज़ार करता हूँ