क़लम कबाड़ में दे दी किताब रद्दी में फ़रोख़्त कर दिए आँखों ने ख़्वाब रद्दी में अजब नहीं जो मिरा हर्फ़ भी है बे-तौक़ीर सुख़न पड़े हैं यहाँ बे-हिसाब रद्दी में कुछ इस तरह दिया तरतीब आक़िबत का घर गुनाह शेल्फ़ पे रक्खे सवाब रद्दी में महक रहे हैं अजब तौर फ़ालतू काग़ज़ किसी ने फेंके हों जैसे गुलाब रद्दी में मैं अब की बार जो अख़बार फेंकने को गया अजब दिखाई दिया इज़्तिराब रद्दी में हयात-ओ-मौत के रद्द-ओ-क़ुबूल में है जो पीर गुज़ारा कूड़े पे बचपन शबाब रद्दी में तमाम शहर में 'तारिक़' बड़ी तलाश के बाद मैं ख़ुद को हो ही गया दस्तियाब रद्दी में