रंग ख़ुशबू न सदा हूँ तिरे किस काम का हूँ तू ही ख़ुद सोच मैं क्या हूँ तिरे किस काम का हूँ हम-नफ़स क़र्या-ए-पुर-नूर के रहने वाले एक मद्धम सा दिया हूँ तिरे किस काम का हूँ मैं ज़रूरत था मगर तेरी तमन्ना तो नहीं क्यूँ तिरा साथ निभाऊँ तिरे किस काम का हूँ तेरी मर्ज़ी मिरा मसरफ़ तो निकाले जो भी मैं तो ये जानना चाहूँ तिरे किस काम का हूँ तेरा मस्लक ही ये हंगामा-ए-हस्ती है मगर मैं कि महरूम-ए-नवा हूँ तिरे किस काम का है तू जो उस पार खड़ा है तो मुझे क्या 'तारिक़' मैं जो इस पार खड़ा हूँ तिरे किस काम का हूँ