क़रीब आओ गुलों की बरसात हो रही है हमारी ही काएनात में बात हो रही है नज़र नहीं हट रही है चेहरों से दोनों की आज कि बा'द मुद्दत के फिर मुलाक़ात हो रही है सभी के ईमान आज ख़ौफ़-ओ-हिरास में हैं कि हर तरफ़ कुफ़्र की मुदारात हो रही है कहाँ चले शाम दिल-नशीं दिल ग़रीक़-ए-उल्फ़त हूँ मैं अकेली न जाओ जाँ रात हो रही है है मुझ से नाराज़ देवी हर एक ख़ैर-ओ-शर की ये देवियों से ही शरह-ए-हालात हो रही है ख़ुदारा छोड़ो न साथ मेरा ये है गुज़ारिश कि बाज़ी जीती हुई मिरी मात हो रही है