क़स्दन भी उस ने हँस के जफ़ा को वफ़ा पढ़ा शोख़ी तो देखिए कि लिखा क्या था क्या पढ़ा ऐ इश्क़ हम ने तेरा सबक़ दिल से क्या पढ़ा ऐसा पढ़ा कि भूल गए सब लिखा पढ़ा क्या लिखते वो जवाब में अफ़्सोस के सिवा इक कम-पढ़े ने ख़त में फ़ज़ा को क़ज़ा पढ़ा ऐ नामा-बर मैं भेज तो दूँ अपना ख़त उन्हें फिर तेरा क्या बनेगा अगर मुद्दआ' पढ़ा थी कितनी एक मस्त को अल्लाह से लगन सौ बार उस ने लफ़्ज़-ए-जुदा को ख़ुदा पढ़ा 'शब्बर' तिरी तलाश भी कितनी अजीब है तू ने नई रदीफ़ में हर क़ाफ़िया पढ़ा