सामने आ के भी चुपके से निकल जाते हैं हाए क्या लोग हैं किस तरह बदल जाते हैं कसमसाता हुआ बदली में क़मर लगता है उन के गेसू जो कभी रुख़ पे मचल जाते हैं रंज-ओ-ग़म दर्द-ओ-मुसीबत के हैं ख़ूगर कितने गर्मी-ए-हुस्न से कुछ लोग पिघल जाते हैं इस क़दर नाम में उन के है नशे की लज़्ज़त जाम-ओ-पैमाना ओ मय-ख़ाना मचल जाते हैं ग़म न कर मंज़िल-ए-मक़्सूद मिलेगी 'अंजुम' ठोकरें खा के बहुत लोग सँभल जाते हैं