क़िस्सा-ए-जाँ-गुज़ा कहूँ न कहूँ हिज्र का माजरा कहूँ न कहूँ न हुई मंज़िल-ए-तलब हासिल ख़िज़्र को रहनुमा कहूँ न कहूँ अब तो इस ने भी साथ छोड़ दिया उम्र को बेवफ़ा कहूँ न कहूँ जब दवा फ़ाएदा नहीं करती दर्द को बे-दवा कहूँ न कहूँ बे-रियाई में फ़र्द है वो भी रिंद को पारसा कहूँ न कहूँ जिस से पड़ जाएँ आबले लब पर तुम से वो माजरा कहूँ न कहूँ मुझ को गिर्दाब से बचा लाया नाख़ुदा को ख़ुदा कहूँ न कहूँ हरम-ओ-दैर में भी वो न मिला बख़्त को ना-रसा कहूँ न कहूँ