शोरिश-ए-बेगानगी की इब्तिदा हम से हुई पास रह कर दूर रहने की ख़ता हम से हुई ज़िंदगी में कौन से हम से गुनह सरज़द हुए क्यों तिरी चश्म-ए-करम ना-आश्ना हम से हुई मासिवा-ए-दीद तेरी हम ने कुछ चाहा न था किस ने की थी इल्तिजा कब इल्तिजा हम से हुई तेरे दर पर मेरे सज्दे दर्द से लबरेज़ थे ऐसे में तौहीन क्यूँकर जा-ब-जा हम से हुई लोग अपना हाल-ए-दिल गीतों में करते हैं बयाँ इश्क़ में तो इब्तिदा हम्द-ओ-सना हम से हुई जान लेते राज़-ए-हस्ती राज़-ए-हक़ होता अगर तेरी क़ुदरत यूँ तो सूरत-आश्ना हम से हुई दिल ही था जो रंज-ओ-ग़म में शोर-ओ-शर करता रहा फ़र्त-ए-ग़म में शोरिश-ए-अर्ज़-ओ-समा हम से हुई आशियाँ उजड़ा गुलों के चेहरे मुरझाए 'रफ़ीक़' क्या गुनह-आलूदा ये बाद-ए-सबा हम से हुई