क़िस्सा-ए-नफ़-ओ-ज़रर याद आया फिर अज़ीज़ों का हुनर याद आया पेट पर बाँध लिया है पत्थर जब कभी लुक़्मा-ए-तर याद आया आया पीरी में इबादत का ख़याल हाए कब ज़ाद-ए-सफ़र याद आया जब कभी उस को भुलाना चाहा वो ब-अंदाज़-ए-दिगर याद आया देख कर दस्त-ए-हिनाई उन का ख़ून-ए-दिल ख़ून-ए-जिगर याद आया नहीं आसान ज़मीन-ए-'ग़ालिब' था हमें ज़ोम-ए-हुनर याद आया कोई मिलता था गले हम से 'शकील' देख कर शाने को सर याद आया