रात दिन माजरा उदासी का दूर तक सिलसिला उदासी का सब से दीवाना-वार पूछता हूँ मैं ठिकाना पता उदासी का मुझ को ख़ुशियाँ न रास आएँगी मैं तो हूँ मुब्तला उदासी का मेरे मरने के बाद सोचो तो क्या बनेगा भला उदासी का शायरी के लिए मुनासिब है रात और मरहला उदासी का शब-ए-फ़ुर्क़त नहीं 'वसीम-अहमद’ साँप है रेंगता उदासी का