रात की ज़ुल्फ़ कहीं ता-ब-कमर खुल जाए हम पे भी चाँद सितारों की डगर खुल जाए थक गई नींद मिरे ख़्वाब को ढोते ढोते क्या तअज्जुब है मिरी आँख अगर खुल जाए मेरा सरमाया मिरे पावँ के छालों की तपक रास्ते में ही न सब ज़ाद-ए-सफ़र खुल जाए आज दरिया नहीं कूज़े में समाने वाला वक़्त है मुझ पे मिरा ज़ोम-ए-हुनर खुल जाए सब मुसाफ़िर हैं नई राह की सब को है तलाश सब पे मुमकिन तो नहीं राह-ए-दिगर खुल जाए अपनी तन्हाई में महबूस हूँ मुद्दत से 'नदीम' तू अगर साथ हो दीवार में दर खुल जाए