राज़-ए-दिल आश्कार होता है आदमी शर्मसार होता है जिस पे उन की निगाह होती है साहब-ए-इक़्तिदार होता है फूल दामन को चाक करते हैं जब भी अहद-ए-बहार होता है दिल में अरमान जब नहीं होते हसरतों का मज़ार होता है उस की रहमत को प्यार आता है जब कोई शर्मसार होता है मंज़िल-ए-इश्क़ तय जो करता है बंदा-ए-किर्दगार होता है याद आती है जब कभी उन की हर-नफ़स बे-क़रार होता है उन के चेहरे को देख कर 'राही' दिल पे कब इख़्तियार होता है