रब्त शीशे से तअल्लुक़ है न कुछ जाम के साथ निस्बतें जब से हुईं दिल को तिरे नाम के साथ ज़िंदगी अजनबी जज़्बात का इक संगम है कैफ़-ए-आग़ाज़ भी है हसरत-ए-अंजाम के साथ जाम-ओ-मीना से अलग उस में है इक कैफ़-ओ-सुरूर आओ कुछ दूर चलें गर्दिश-ए-अय्याम के साथ ज़िंदगी में बड़े मफ़्हूम नज़र आएँगे चंद लम्हे तो गुज़ारो किसी नाकाम के साथ शायरी आइना-ए-ज़ीस्त में ख़ुद-बीनी है अपनी इक राह अलग है रविश-ए-आम के साथ चारासाज़ों का न होना बड़ी ने'मत है 'शफ़ीक़' रंज-ओ-ग़म हम ने उठाए बड़े आराम के साथ