रफ़्तार-ए-ज़िंदगी ज़रा थम जाओ तो सही फ़ुर्सत में मेरे घर की तरफ़ आओ तो सही इक बेवफ़ा के ग़म में तड़पने से फ़ाएदा नादान दिल है इस को भी समझाओ तो सही ख़ुशियाँ भी तेरे ग़म के झमेले में गुम हुईं मौक़ा मिले तो दर्द में मुसकाओ तो सही किस किस तरह मैं तेरी उतारुंगी आरती आँगन में नंगे पाँव ज़रा आओ तो सही यादों का 'नाज़' सिलसिला टूटे न अब कभी दिल को किसी के वास्ते तड़पाओ तो सही