रह-ए-हयात में ऐसा भी हाल होता है ख़ुशी किसी को किसी को मलाल होता है जो बाँट लेता है औरों का दर्द हँस हँस कर हक़ीक़तन वो बशर बा-कमाल होता है ग़ुरूर करता है नाहक़ तू अपनी हस्ती पर उरूज वालों का अक्सर ज़वाल होता है जो ज़ुल्म सहता है लेकिन ज़बाँ से कहता नहीं उस आदमी का तो जीना मुहाल होता है सँभल सँभल के मैं उस जा पे पाँव रखता हूँ जहाँ भी अपनी अना का सवाल होता है फटे लिबास पे जो लोग हँस रहे हैं 'समर' बता दो उन को कि गुदड़ी में लाल होता है