राह ज़िद की न इख़्तियार करो सच्ची बातों पे ए'तिबार करो अपने बल पर करो जो करना हो क्यों किसी पर तुम इंहिसार करो मुश्किलें ज़िंदगी में आती हैं ग़म से ख़ुद को न हम-कनार करो हर वजूद-ए-बशर घुटन में है कुछ फ़ज़ाओं को ख़ुश-गवार करो इज़्ज़त-ओ-क़द्र पाँव चूमेगी अपने अख़्लाक़ उस्तुवार करो दास्ताँ है अभी तवील बहुत जाओ घर कल का इंतिज़ार करो फ़ाएदा भी है इस से क्या 'अंजुम' मेरे ज़ख़्मों को मत शुमार करो