रहमतों में तिरी आग़ोश की पाले गए हम ऐसे मरदूद हुए फिर कि निकाले गए हम आसमानों को सँभाले रही क़ुदरत तेरी इतने सरकश थे कि तुझ से न सँभाले गए हम इश्क़ की बू थी तजस्सुस का नशा शौक़ का रंग साग़र-ए-गुल में तिरे वास्ते ढाले गए हम तजरबात अपने मुक़द्दर में लिए मरहला-वार तेरे बाज़ार-ए-तमाशा में उछाले गए हम जिंस-ए-एहसास की दूकान पे सन्नाटा था कोई गाहक न था इस का तो उठा ले गए हम रो'ब तारी था ज़बाँ पर तिरा मख़्लूक़ थी चुप हम तो आशिक़ थे ग़म-ए-हिज्र सुना ले गए हम लूट ले चैन कोई ये न हुआ था अब तक मुतमइन रह गया वो और चुरा ले गए हम