उम्र गुज़री है सहारे नहीं बदले मैं ने जो पियारे हैं वो प्यारे नहीं बदले मैं ने वही आकाश वही रात की चादर सर पर चाँद को देख के तारे नहीं बदले मैं ने नीले पीले से ये लम्हात हैं जागीर मिरी हिज्र में अपने इशारे नहीं बदले मैं ने मुद्दतों बाद तिरी याद के मैले कपड़े कुछ बदल भी दिए सारे नहीं बदले मैं ने मैं नदी थी तो मिरे साथ किनारा तू था साथ बहती रही धारे नहीं बदले मैं ने ख़्वाब को सुब्ह की दहलीज़ पे ले आई हूँ आँख खोली है नज़ारे नहीं बदले मैं ने तेरे ख़्वाबों से ही रौशन रहा ये दिल का 'दिया' हिज्र में ख़्वाब तुम्हारे नहीं बदले मैं ने