राहत का ज़माने में सामान नहीं मिलता इंसान की बस्ती में इंसान नहीं मिलता कुछ ऐसी हवा बदली अफ़्सोस ज़माने की एहसान के बदले में एहसान नहीं मिलता इस कार-गह-ए-हस्ती का इतना फ़साना है हो नफ़्स जहाँ बाक़ी इरफ़ान नहीं मिलता आईन बहुत अच्छा दा'वे भी हसीं लेकिन उल्फ़त का हमें फिर भी फ़रमान नहीं मिलता शद्दाद की जन्नत हैं जम्हूर के सब वा'दे अब दर्द का अपने कुछ दरमाँ नहीं मिलता क्या बढ़ के नहीं चूमे हैं दार-ओ-रसन हम ने फिर भी हमें इज़्ज़त का ईक़ान नहीं मिलता गो निस्फ़ सदी बीती आज़ादी-ए-कामिल को राहत का 'ग़ुबार' अब तक सामान नहीं मिलता