रंग ईसार के चेहरे का निखरता कैसे ज़ख़्म अहबाब न देते तो सँवरता कैसे मिरी क़िस्मत में बुलंदी का सफ़र लिक्खा था साज़िश-ए-वक़्त से पस्ती में उतरता कैसे हौसला था मिरा मज़बूत पहाड़ों की तरह टूट कर तिनकों की मानिंद बिखरता कैसे साया था ही नहीं माली का चमन के सर पर रंग फूलों का यतीमी में निखरता कैसे मुद्दतों रहना था जिस पेड़ के साए में मुझे उस की शाख़ों को बताओ मैं कुतरता कैसे मैं ने चाहा था ज़रा देर वो ठहरे 'आलम' वो तो बहता हुआ दरिया था ठहरता कैसे