उठे आज उन से फ़ैसला कर के या ख़फ़ा हो के या ख़फ़ा कर के उस की रफ़्तार से ग़नीमत है कि रहे हश्र ही बपा कर के उस सनम की गली में जाता हूँ फिर नज़र जानिब-ए-ख़ुदा कर के ग़ैर तक अपनी बात पहुँचाई उस से इज़हार-ए-मुद्दआ कर के कर तो लें तर्क-ए-इश्क़ हम नासेह पर गुज़ारेंगे उम्र क्या कर के मुझ पे जो चाहिए सितम कीजे पर न अग़्यार का कहा कर के मुफ़्त ज़िल्लत उठाई 'सालिक' ने ज़िक्र इस बज़्म में मिरा कर के