रंग-ए-तख़सीस में ता'मीम भी हो सकती है वो इकाई हूँ जो तक़्सीम भी हो सकती है ऐ मिरे ग़म्ज़ा-ए-ग़म क्या तुझे एहसास नहीं तेरे जज़्बात की तफ़्हीम भी हो सकती है कुछ न होने की ख़बर पा के खुला है मुझ पर मेरी क़ातिल मिरी ता'लीम भी हो सकती है देख लो उस का सरापा तो यक़ीन आ जाए रंग और नूर की तज्सीम भी हो सकती है वो अगर चाहे तो काफ़िर को मुसलमाँ कर दे आज़री दीन-ए-ब्राहीम भी हो सकती है हमें एहसास हुआ भी तो बिछड़ जाने पर ज़िंदगी राह में दो-नीम भी हो सकती है अभी ये तीर कमाँ से नहीं निकला 'आसिफ़' अभी तक़दीर में तरमीम भी हो सकती है