तेरी दुनिया ये तेरे गुमान ओ यक़ीं या-अख़ी वाहिमे के सिवा और कुछ भी नहीं या-अख़ी एक बद-शक्ल सी आरज़ू के सिवा कुछ न था हम समझते रहे जिस को सब से हसीं या-अख़ी बास ताज़ा लहू की हवाओं में है चार-सू ख़ुद को देखूँ कि देखूँ तिरी आस्तीं या-अख़ी मुरशिदी आप के आस्ताने की क्या बात है मिलते हैं इस जगह आसमान-ओ-ज़मीं या-अख़ी इर्तिकाज़-ए-तवज्जोह से कब होते हैं मो'जिज़े हब्स-ए-दम ही तो हुस्न-ए-तसव्वुफ़ नहीं या-अख़ी जुर्म ये है कि ख़ुर्शीद के ख़ानवादे से हूँ मुझ से ख़ाइफ़ हैं क्यों आप के जा-नशीं या-अख़ी ज़िंदगी मिस्ल-ए-श'अब-ए-अबी-तालिब 'आसिफ़' की है बा-ख़ुदा साज़िशों के सबब बिल-यक़ीं या-अख़ी