सितम-रसीदा ज़माना-गज़ीदा लोगों से हमारा रब्त है बस चीदा चीदा लोगों से किसी से बाँध के रखते कोई तअ'ल्लुक़ क्या खिचे खिचे रहे हम भी कशीदा लोगों से ये मौज तेरी तरफ़ भी तो लौट सकती है कलाम ख़ुश्क न कर आबदीदा लोगों से ख़ुशा जुनूँ का ये आलम ख़ुशा ये वहशत-ए-इश्क़ भरा है दश्त गरेबाँ-दरीदा लोगों से बग़ैर उन के न जाने जहान का क्या हो ये बज़्म है तो उन्ही ख़्वाब-दीदा लोगों से न हो सका सुख़न-ए-गर्म से बयाँ 'तारिक़' जो कह गया मिरा अश्क-ए-तपीदा लोगों से